छठ पर्व एवं उसके पीछे के कारण
छठ पर्व बिहार और उत्तरी उत्तर प्रदेश का महा पर्व माना जाता है ! इसके पीछे का नवीनतम इतिहास महाभारत में मिलता है, जब सूर्य पुत्र कर्ण नाभि तक गंगा नदी में भागलपुर के पास सूर्य की उपासना करते थे! छठ करने की विधि सब को पता होगी, या अनन्य जगह पर मिल जायेंगे! मैं इसके पीछे के इतिहास के बारे में अपनी जानकारी अनुसार प्रकाश डालने की कोशिश करूँगा. अगर कोई त्रुटी हो, तो निसंकोच मुझे सही करने का कष्ट करे!
क्युकी ये पर्व दीपावली के छठे दिन होता है, तो मैं थोडा सा दिवाली पे भी प्रकाश डालना चाहूँगा! वर्षा ऋतू के ख़त्म होते ही जो कित-पतंग-कीड़े इत्यादि जो की अनेक बीमारियों के कारण होते है, हमारे घर और वातावरण में अपना स्थान बना चुके होते है! मिटटी के दीये जिसमे घी या सरसों तेल होता है, जलाने की मान्यता है, धार्मिक कारण आप राम को माने और महाभारत के अंश को या कुछ और, वैज्ञानिक कारण ये जरुर है की सरसों तेल और घी के ये दिये जलने से कित-पतंगों का नाश होता है, और घी के उपयोग से वातावरण स्वछ होता है! खैर, अब तो चीन निर्मित विद्युत् दीप का समय है……इससे सिर्फ चीनियों को ही फायदा होता है, जो हमारे वातावरण के अनुकूल दिक्कते है उनका समाधान नहीं!
छठ का वर्णन रिग्वेद में भी मिलता है! इससे यह तो अवश्य पता चलता है की ये मौजूदा पर्वो में सबसे पौराणिक है, रिग्वेद से भी पूर्व से!! मकर सक्रांति की अलावा ये दूसरा पर्व है जिसमे सूर्य भगवांन की उपासना की जाती है! मकर सक्रांति उत्तरायण के समय होता है, वही सूर्य षष्टि(छठ) दक्षिणायन में होता है. सूर्य को एक तरह से हम धन्यवाद कर रहे होते है पृथ्वी पे पूरी सृष्टि बनाये रखने के लिए! एक छठ कार्तिक में मनाया जाता है, तो दूसरा कार्तिक में दिवाली के बाद! छठी शब्द षष्टि का प्राकृत भाषा रूप है! और ऐसा भी माना जाता है की छत हथ योग में मौजूद छः विधियों की वजह से अपना नाम पाता है! हथ योग सूर्य से उर्जा प्राप्त करने की विधि है! वेदों में उषा जिनको सूर्य की पत्नी माना गया है, उनको छठी के नाम से जाना जाता है! उषा सूर्य की पहली किरण होती है, और प्रत्युष सूर्य की आखरी किरण, और छठ पर्व में इन्हें ही अर्ग्य दिया जाता है! आप यूं भी समझ सकते है की उषा हमारे अन्दर एक नयी उर्जा के संचार का प्रेरक है!
विधि पे थोडा सा प्रकाश डालना चाहूँगा, शायद आपको आनंद आये!
नहाये-खाए : व्रती सामान्यत: गंगा जल से स्नान करने के बाद उसकी के जल को घर लाते है, अपने भोजन को पकाने के लिए! गंगा नदी और एवं उसके जल की खूबी तो आपका ज्ञात ही होता, जब भागीरथी अलकनंदा से मिलके गंगा बनती है तब तक उसके पास अनगिनत खनिज का भंडार आ चूका होता है हिमालय के पर्वतो से, और कई जड़ी-बूटी जो उस इलाके में पायी जाती है उसमे विलीन हो चुकी होती है…जब ये बिहार में आते है और अन्य नदी से मिलते है जैसे की कोसी, गंडक(ये नदिया भी हिमालय से नेपाल के राश्ते हमारे यहाँ आती है) तब ये पानी कितना पवित्र कितना लाभ दायक होता होगा, आप इसका तुलना भर कर सकते है(मैं मौजूदा परिपेक्ष में मौजूद प्रदुषण के प्रभाव के बारे में नहीं बात करूँगा)! और जो खाना बनाने की प्रथा है वो मिटटी की बर्तन में है, जिसमे खाने का शुद्ध स्वाद आता है(पीतल और चांदी के बर्तनों का अपना लाभकारी महत्व हैं, परन्तु इस स्थान पे शुद्धता बिना सघन खनिज के, इस बात पे जोड़ होता है)! लौकी चना और अरवा चावल खाने की प्रथा है! लौकी क्षीराशय होता है जिससे पेट में कब्ज़ नहीं होता उपवास के दौरान भी, चने की दाल अपने आप में संपूर्ण आहार होता है, और अरवा चावल उर्जा का स्त्रोत! और इस दिन सफाई पे विशेष ध्यान होता है ताकि आप स्वच्छ वातावरण में रहे!
खरना: इस दिन सूर्य ढलने तक उपवास रखना होता है, और व्रती खुद आटा पीस कर पूरी और खीर बनाते है! खीर में सिर्फ गुड का उपयोग होता है, चीनी का नहीं! शायद आपको पता हो, हर व्रत त्यौहार में सिर्फ गुड का उपयोग होता है….क्यूंकि चीनी बनाने के क्रम में जानवर के हड्डियों का प्रयोग चीनी बनाने के शुरुवाती दौर में होता था, शायद अब भी होता है!
सांझी अर्ग्य: त्यौहार में बनाये जाने वाले प्रसाद की तैयारी की जाती है, घर पे! स्वच्छता पे विशेष बल होता है! और शाम में डूबता सूर्य की आखरी किरण को अर्ग्य दिया जाता है! इस मौके पे व्रती सफ़ेद साड़ी/धोती जो हल्दी से रंगी जाते है इससे पहनाने की विधि होती थी! और छठ के गीत गए जाते है! पांच ईख के नीचे एक दिया रखा जाता है, पांच ईख सूचक होते है पंचतत्व का जिससे हमारा शरीर बना हुआ है!
पारुन्न; अगले दिन उषा को अर्ग्य देकर प्रसाद का वितरण किया जाता है!
धार्मिक रूप से देखे तो यह इकलौता व्रत है, जिसमे पुजारी की आवश्यकता नहीं होती! क्यों? आप अगर काफी अन्दर जाए तो आप इसका योग, यौगिक, एवं वैज्ञानिक वजह पायेंगे…..जनमानस तक पहुचने के लिए मेरे सोच से धर्म का तरीका अपनाया गया होगा! अब वैज्ञानिक तरीके जो मैंने कही कही पढ़े, संगृहीत कर देता हूँ आपके लिए….
Yogic viewpoint
There is also a yogic process of Chhath that may have been associated with the religious observance of Chhath puja. All the traditional rules of Chhath puja have also got some strong scientific reasons behind it & by following that maximum benefits can be gained.
The Yogic Philosophy of Chhath
According to yogic philosophy, the physical bodies of all the living organisms are highly sophisticated energy conducting channels. The solar bio-electricity starts flowing in the human body when it is exposed to solar radiations of specific wavelengths. Under particular physical and mental conditions, the absorption and conduction of this solar-bio-electricity increases. The processes and the rituals of the Chhath puja aim at preparing the body and the mind of the Vratti (devotee) for the process of cosmic solar energy infusion.[citation needed]
The scientific process similar to Chhath was used by the Rishis of yore for carrying out their austerities without any intake of solid or liquid diet. Using a process similar to the Chhath puja, they were able to absorb the energy needed for sustenance directly from the sun, instead of taking it indirectly through food and water.
The retina is a kind of photoelectric material, which emits subtle energy when exposed to light. Hence, very subtle electric energy starts flowing from the retina. This energy (photo-bio-electricity) is transmitted from the retina to the pineal gland by the optic nerves connecting the retina to the pineal gland, leading to its activation. The pineal gland is in close proximity with the pituitary and hypothalamus glands (together, three glands are called Triveni) due to which, the energy generated in this process starts impacting these glands. Consequently, the pranic activity becomes uniform, giving the Vratti good health and a calm mind.
Stages of Chhath (Conscious Photoenergization Process)
According to Yoga philosophy, the process of Chhath is divided into six stages of the Conscious Cosmic Solar Energy Infusion Technique (Conscious Photoenergization Process).[11]
Stage 1: Fasting and the discipline of cleanliness leads to detoxification of the body and mind. This stage prepares the body and mind of the Vratti (devotee) to receive the cosmic solar energy.
Stage 2: Standing in a water body with half the body (navel deep) in the water minimizes the leak of energy and helps the prana (psychic energy) to move up the sushumna (psychic channel in the spine).
Stage 3: Cosmic Solar Energy enters the Vratti’s pineal, pituitary and hypothalamus glands (Triveni complex) through the retina and optic nerves.
Stage 4: Activation of Triveni tri-glandular complex (pineal, pituitary and hypothalamus).
Stage 5: A kind of polarization happens in the spine, which results in the Vratti’s (devotee) gross and subtle bodies getting transformed into a cosmic powerhouse. This can also lead to the awakening of the latent psychic energy popularly known as the Kundalini Shakti.
Stage 6: The body of the Vratti (devotee) becomes a channel which conducts, recycles and transmits the energy into the entire universe.
Benefits of Chhath process
The Chhath process results in detoxification
The Chhath process stresses mental discipline. The discipline of mental purity is a result of this work. By employing a number of rituals, the vrattis focus on maintaining the cleanliness of the offerings and environment. Cleanliness is the most dominant thought that prevails in the minds of all the devotees during Chhath.
This has a great detoxification effect on the body and the mind as mental moods can result in biochemical changes. Now comes the physical detoxification. The fasting paves the way for detoxification at a material level.
Detoxification helps in regularizing the flow of prana and makes the person more energetic. The natural immune system of the body spends much of its energy in fighting the toxins present in the body. By using the detoxification methods such as pranayam, meditation, yoga and Chhath practices, the amount of toxins present in the body can be reduced to a great extent. Thus, with reduction in the amount of toxins, the expenditure of energy also reduces and you feel more energetic. It improves the appearance of the skin. The eyesight can improve and the ageing process of the body slows down.
Benefits of Chhath Puja
Photo-electro-chemical effect: physical benefits
The Chhath practice improves the immunity of the Vratti’s body.
Antiseptic effect: Safe radiation of sunlight can help cure fungal and bacterial infections of the skin.
Raktavardhak (increase in fighting power of blood): As a consequence of the practice of Chhath, the energy infused in the blood stream improves the performance of white blood cells.
The solar energy has a great influence on the glands, which results in balanced secretion of hormones.
Energy requirements are met by the solar energy directly. This will further detoxify the body.
Photo-electro-psychic effects: mental benefits
A state of creative calmness will prevail in the mind.
To a great extent, all negative responses have their origin in the disturbed flow of prana. With the pranic flow regularized, the duration and frequency of occurrences of anger, jealousy, and other negative emotions will be reduced.
With patient and sincere practice, the psychic powers like intuition, healing, and telepathy awaken. This depends on the concentration with which the practice is undertaken.
Daily sun meditation (Chhath process)
In the fast lifestyle of the present times, it may not be possible to follow the Chhath process very often. The detoxification can be undertaken through pranayam, yoga, meditation and Conscious Photoenergization Process known as Chhath Dhyan Sadhana (CDS).
Chhath Dhyan Sadhana (CDS): Conscious Photoenergization Process
Assume a comfortable position (standing or sitting) with back and spine straight. With eyes closed, face the Sun. Inhale completely, as slowly as possible. Do not strain in making the breathing slow. Maintain your comfort level. As you breath in, visualize (feelingly experience) the cosmic solar energy entering through your eyes and moving to the pineal gland through optic nerves and charging the pineal–pituitary–hypothalamus complex. Now, as you exhale, visualize the cosmic solar energy flowing down the pineal gland and spreading throughout your body with a revitalizing effect.
Thus, the process starts with inhalation and ends in exhalation. This constitutes one round. It is suggested to start with five rounds (two minutes), and increase it time permitting. On completion of the practice, thank the Sun for bestowing upon you the life giving solar energy. Thereafter, sit quietly for a minute, observing the good things in the environment around.
CDS should be practiced within one-hour window after sunrise or within one-hour window before sunset. Any person of any age can practice CDS. If you wish to practice CDS at any time other than sunrise or sunset, do not practice it in front of Sun. You can however, practice CDS in a room. Even a bed-ridden person can try and consciously draw in the solar energy while lying on the bed. With regular practice, he/she will notice an improvement in physical and mental health. For those who are not comfortable facing the sun, they can practice the technique in any room having proper ventilation. If you have time, you can also practice it twice a day. Do not hurry in increasing the number of rounds, as there are no shortcuts to success in this method. The nervous system of the body takes its own time in adapting and to be able to receive the energy.
Significance of emphasis on sunrise and Sunset periods
Only sunrise and sunset are the periods during which the majority of humans can safely obtain the solar energy directly from the Sun. However, there may be some exceptions. That is why, in Chhath puja, there is a tradition of offering Arghya to the Sun in late evening and in early morning. During these phases (one hour window after sunrise and before sunset), the ultraviolet radiation levels remain in safe limits.
[अंग्रेजी में दिए गए पाठ्य के स्त्रोत योग्श्री ओमकार की पुस्तक]
1 comment:
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